रामपुर तिराहा गोलीकांड बरसी: बेटे का इंतजार करते-करते दुनिया से विदा हुए माता-पिता, गंगनहर में बहा दी गई थी लाश

देहरादून। आज रामपुर तिराहा गोलीकांड की 31वीं बरसी है। दो अक्तूबर 1994 को दिल्ली कूच कर रहे उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों पर रामपुर तिराहे, मुजफ्फरनगर में पुलिस ने गोलियां बरसा दी थीं। इस घटना में कई आंदोलनकारी शहीद हो गए और अनेक लापता हो गए।
अठूरवाला निवासी राजेश नेगी (21 वर्ष), जो एसजीआरआर कॉलेज देहरादून में बीएससी फाइनल के छात्र थे, इस गोलीकांड के बाद से लापता हैं। उनके बड़े भाई मनोज नेगी भी आंदोलन में साथ थे। गोलियां चलने के बाद मनोज अन्य साथियों के साथ धरने पर बैठ गए और देर शाम तक मुजफ्फरनगर के अस्पतालों में भाई को ढूंढते रहे। खबर मिलने पर देहरादून तक खोज की गई, लेकिन राजेश का कोई सुराग नहीं मिला।
राजेश का शव कभी नहीं मिल पाया। परिजनों के अनुसार गोली लगने के बाद उनकी लाश गंगनहर में फेंक दी गई थी। इस वजह से अंतिम दर्शन तक न हो सके।
बेटे के इंतजार में पिता महावीर सिंह 1999 में और मां सोना देवी 2016 में दुनिया से चल बसे। परिजनों ने मां को कभी सच नहीं बताया कि उनका बेटा राज्य आंदोलन में बलिदान हो गया। जब भी वह पूछतीं तो यही कहा जाता कि “आज नहीं तो कल राजेश जरूर आएगा।” इसी उम्मीद के सहारे वह जीवनभर इंतजार करती रहीं।
राजेश की याद में भानियावाला तिराहे पर स्मारक और अठूरवाला में शहीद द्वार बनाया गया है।
इस मौके पर आंदोलनकारी मंच के प्रदेश महामंत्री रामलाल खंडूड़ी ने कहा कि राज्य गठन के 25 वर्ष बाद भी विकास केवल तीन जिलों तक सीमित है। पहाड़ी जिले आपदा से त्रस्त हैं और गैरसैंण को आज तक स्थायी राजधानी नहीं बनाया गया। उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा कि राज्य आंदोलन के लिए जिस परेड मैदान में युवा धरने पर बैठते थे, आज 25 साल बाद भी पेपर लीक जैसे मामलों पर उसी परेड मैदान में धरना देना पड़ रहा है।