उत्तराखंड में भूधंसाव: कुदरत और इंसानी लापरवाही की दोहरी मार

देहरादून। उत्तराखंड में भूस्खलन और बाढ़ के साथ भूधंसाव (Land Subsidence) की समस्या तेजी से बढ़ रही है। वैज्ञानिकों का मानना है कि कम समय में तेज और अधिक बारिश इसकी बड़ी वजह है। लगातार बारिश से मिट्टी की होल्डिंग क्षमता कम हो गई है और प्राकृतिक जल स्रोतों की निकासी के मार्ग मानवीय गतिविधियों से अवरुद्ध हो रहे हैं, जिससे खतरा और बढ़ रहा है।
इस साल चमोली, टिहरी, रुद्रप्रयाग और मसूरी समेत कई क्षेत्रों में भूधंसाव की घटनाएँ दर्ज हुईं। वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान की वैज्ञानिक डॉ. स्वप्नमिता वैदेश्वरन ने कहा कि बारिश और जल निकासी के रास्तों पर निर्माण गतिविधियाँ भूधंसाव को और गंभीर बना रही हैं।
श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय के प्रो. डीसी गोस्वामी के अनुसार हिमालय संवेदनशील क्षेत्र है, जहाँ अंधाधुंध निर्माण और बहुमंजिला भवनों ने समस्या को बढ़ाया है। उन्होंने चेतावनी दी कि प्राकृतिक जल स्रोतों के पास किसी भी हाल में भवन निर्माण नहीं होना चाहिए और सड़कों के निर्माण में भी मानकों का पालन ज़रूरी है।
बारिश के आँकड़े भी खतरे का संकेत दे रहे हैं:
- अगस्त 2023: 353.9 मिमी
- अगस्त 2024: 419.4 मिमी
- अगस्त 2025: 574.4 मिमी
कुल वर्षा 2023 में 1203 मिमी रही, जो 2024 में बढ़कर 1273 मिमी हो गई। लगातार बढ़ती वर्षा राज्य में भूधंसाव की गंभीरता की पुष्टि करती है।