देहरादून आपदा: सबका ध्यान नदी पर था, पीछे से टूटा मुसीबतों का पहाड़

देहरादून | सहस्रधारा के मजाडा गांव में सोमवार-मंगलवार की रात बादल फटा। लोग सोच रहे थे कि पहले की तरह इस बार भी नदी ही विनाश लाएगी। सभी की निगाहें सामने बहती नदी पर थीं, मगर तब तक किसी ने पीछे खड़े पहाड़ की तरफ देखा तक नहीं। अचानक पहाड़ का बड़ा हिस्सा टूटकर गिर पड़ा और कई घर मलबे में समा गए। कुछ लोग जैसे-तैसे भागकर जान बचाने में सफल रहे, लेकिन चार लोग और कई मवेशी दब गए।
गांव को मिला नया घाव
मजाडा गांव के सामने बहने वाली सहस्रधारा नदी में तेज बारिश से जब पानी उफना, तो लोग इकट्ठा होकर उसका रुख देखने लगे। गांववाले दुआ कर रहे थे कि नदी का मलबा उनके घरों तक न पहुंचे। तभी अचानक गांव के पीछे स्थित पहाड़ का हिस्सा भारी गर्जना के साथ टूट पड़ा। देखते ही देखते गांव का बड़ा हिस्सा तबाही की चपेट में आ गया।
2011 से अलग रहा मंजर
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि वर्ष 2011 में जब बादल फटा था, तब भी मजाडा गांव प्रभावित हुआ था, मगर उतना नुकसान नहीं हुआ था। उस समय नदी ही विनाश का कारण बनी थी, पहाड़ सुरक्षित रहा था। लेकिन इस बार पहाड़ ही गांव का काल बन गया। घर, खेत और खलिहान सब मलबे में दब गए।
लोगों की पीड़ा
गांव की सुहारी और आरती बताती हैं कि उनका पूरा जीवन इन पहाड़ों की गोद में बीता है। यही खेत-खलिहान उनकी रोजी-रोटी का सहारा रहे हैं। पहाड़ उन्हें हमेशा अपना साथी और रक्षक लगता था। लेकिन इस बार वही पहाड़ मौत बनकर टूटा। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि पहाड़ ऐसा रौद्र रूप भी दिखा सकता है।
मलबे में दबे लोग और मवेशी
आपदा में चार लोगों की मौत हो गई, जबकि बड़ी संख्या में मवेशी भी मलबे में समा गए। कुछ लोग दौड़कर सुरक्षित स्थानों तक पहुंच गए, लेकिन जिन्हें भागने का मौका नहीं मिला, वे पहाड़ के टूटने के साथ ही दब गए। गांव में चीख-पुकार और अफरा-तफरी का माहौल रहा।
प्रशासन और बचाव
आपदा के बाद प्रशासन की टीमें मौके पर पहुंचीं और राहत-बचाव कार्य शुरू किया गया। मलबे में दबे लोगों की तलाश जारी है। कई परिवारों को अस्थायी राहत शिविरों में पहुंचाया गया है। सरकार ने नुकसान का आकलन करने और प्रभावितों को सहायता पहुंचाने के निर्देश दिए हैं।
चेतावनी की घड़ी
यह आपदा एक बड़ा सबक भी छोड़ गई है। पहाड़ी क्षेत्रों में बादल फटने के खतरे को केवल नदी या नालों तक सीमित समझना भारी भूल है। पहाड़ का भूगर्भीय ढांचा और लगातार हो रहे कटाव भी गांवों के लिए जानलेवा साबित हो सकते हैं।