हरिद्वार/ समारोह के अध्यक्ष, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन (म.प्र) के कुलपति, प्रख्यात वनस्पति विज्ञानी, प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि मैं व्यक्तिश: प्रोफेसर दिनेश चमोला शैलेश’ से परिचित नहीं हूं किंतु उनके कृतित्व से वर्षों पूर्व से भली-भांति परिचित हूं…. उनके द्वारा वर्षों पूर्व संपादित हिंदी पत्रिका ‘विकल्प’ के चर्चित विशेषांकों के अद्भुत शृंखला व उनके अपूर्व अवदान से परिचित हूं कि किस प्रकार एक प्रबुद्ध साहित्यकार विज्ञान को हिंदी में अभिव्यक्त करने का सफलतम प्रयास अपनी रचनाओं के माध्यम से कर रहा है ।

इस संग्रह की विज्ञान कविताओं पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि अच्छा साहित्य युवा पीढ़ी और राष्ट्र को संस्कारित करने का कार्य करता है । विज्ञान कविताओं के माध्यम से पेड़, पौधे, पशु, पक्षी, जीव, जंतु आदि से संबंधित कई प्रकार की दुर्लभ शब्दावली का संरक्षण, उनके शब्दकोश और ज्ञान भंडार की क्षमता को विस्तारित करता है । उनके मस्तिष्क में प्रवेश कर चुकी वैज्ञानिक मानसिकता उनकी दिशा और दृष्टि को बदल सकती है । इन कविताओं के माध्यम से नई-नई शब्दावली से बालकों के मस्तिष्क में नई-नई उद्भावनाएं और संकल्पनाएं पैदा होंग, जिससे इस ज्ञान परंपरा के संरक्षण में भाषा की अपूर्व महत्ता स्वयं ही सिद्ध होती दिखाई देगी । निसंदेह इस संग्रह की कविताएं भारतीय जीवन मूल्यों; ज्ञान की परंपरा तथा विज्ञान को जनमानस तक पहुंचाने के लिए एक महत्वपूर्ण कड़ी सिद्ध हुई है । इसके लिए प्रोफेसर चमोला का भावुक कवि मन अत्यंत बधाई का पात्र है । उनके विज्ञान कविता संग्रह ‘ मेरी 51 विज्ञान कविताएं पर केंद्रित रहा । संयोजक रजिस्ट्रार, प्रो. एम अंबिग के स्वगत भाषण के उपरांत सभा की शोध छात्रा रीना ने लेखक का विस्तृत परिचय पढ़ कर सुनाया। आमंत्रित विद्वान के रूप में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अश्वनी कुमार ने प्रोफेसर दिनेश चमोला शैलेश’ के विज्ञान कविता संग्रह पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस संग्रह की कविताएं बेजोड़ कविताएं हैं जो मनुष्य के अस्तित्व से जुड़ी हुई हैं । देश में नई आर्थिक नीतियों, भारत में कॉर्पोरेट दुनिया के आगमन से पर्यावरण को देखने का किस तरह से प्रयास किया जाए; विकास का कौन सा नया मॉडल तैयार किया जाए; देश को किस रास्ते पर लाया जाए और भविष्य के लिए क्या कुछ हितकारक है, इन सब बातों व समस्याओं का इस संग्रह में कवि ने अनेक विज्ञान कविताओं के माध्यम से बखूबी चित्रण किया है । इन विज्ञान कविताओं की प्रमुख विशेषता यह है कि ये केवल प्रश्न अथवा समस्याएं ही खड़ी नहीं करतीं,अपितु उनका समाधान पहले ही प्रस्तुत करती हैं ।ये हमें सूचित करती हैं, चिंतित करती हैं कि अगर अभी भी कुछ नहीं किया तो हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को विभिन्न प्रकार के संकटों से किसी भी रूप में बचा नहीं सकते, ये भी आगाह करतीं हैं । इस संग्रह की कविताओं में तीन प्रकार की कविताएं हैं – एक चेतना परक कविताएं हैं जो चेतना हमारे डीएनए में जन्मजात रहती है । उन्हीं को लेकर कवि उत्तराखंड के पहाड़, झरने, जलाशय, झरने, नदी, जंगल से अपने आत्मीय संबंधों की पुष्टि करते हुए जनमानस व युग को नए चेतनागत संदेश देना चाहती हैं । विज्ञान को समझने का इतना आसान तरीका, सरल भाषा में विज्ञान को अपनी कविता से जोड़कर फिर मानव समुदाय को आगाह करती हैं ।

वैश्विक स्तर पर प्रो. चमोला की कविताएं हमको समय-समय पर अपने संरक्षण की चेतावनी मात्र नहीं दे रही हैं, बल्कि मूल्य के संरक्षण के साथ-साथ भविष्य के संरक्षण की भी बात कर रही हैं । उनकी कविताओं में गांधी के स्वदेशी के संरक्षण के साथ- साथ जल, जंगल व जमीन चिंता भी समाहित है, जब प्रकृति नहीं बचेगी तो मनुष्य कैसे सुखी रहेगा ? गंगा किनारे साहित्य, संस्कृति व इतिहास का संरक्षण हुआ है, इसलिए कविताएं बहुत सारे विकास के मॉडल व जीवन से जुड़े हुए यक्ष प्रश्न भी खड़े करती हैं। विशिष्ट अतिथि के रूप में विश्वभारती विश्वविद्यालय, शांतिनिकेतन (पश्चिम बंगाल) के पूर्व डीन, प्रोफेसर रामेश्वर प्रसाद मिश्र ने प्रोफेसर चमोला के विविधमुखी योगदान की सराहना करते हुए कहा कि प्रोफेसर चमोला अनुवाद, शब्दावली एवं राजभाषा के पुरोधा रहे हैं । उनके कवि रूप को तो मैं जानता था लेकिन उनकी विज्ञान कविताओं को पढ़, आज अत्यंत हर्षित हूं । ये जीवनी शक्ति की कविताएं हैं । ये कविताएं केवल विज्ञान कविताएं नहीं हैं, बल्कि जीवन जीने की शक्ति के लिए अत्यावश्यक भी हैं। इनमें हर जीव, जंतु,पेड़,पौधे आत्मकथात्मक शैली में अपने जीवन की व्यथा-कथा को कहते हैं किंतु परोक्षत: मानव कल्याण, सृष्टि के विन्यास व विकास की बात इनमें समाई रहती है . ‘मेरी 51 विज्ञान कविताएं,’ की सभी कविताएं समग्र जीवन को जानने की पहल हैं ।बच्चों की पढ़ाई अपनी मातृभाषा में ही होनी चाहिए। मेरे लिए यह जानना अत्यंत हर्ष और प्रसन्नता का विषय है कि उत्तर के एक चर्चित साहित्यकार की रचनाओं पर दक्षिण भारत की ऐतिहासिक संस्था दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है । यह उत्तर से दक्षिण को जोड़ने की अनूठी पहल है । यह अभिनव कार्यक्रम ऐतिहासिक धरोहर की विरासत है । शांतिनिकेतन में भी गुरुदेव टैगोर ने साहित्य, कला के माध्यम से वैश्विक ज्ञान विज्ञान को समेटने का संकल्प लिया था जिसका चित्रण उनकी पुस्तक ‘विश्व परिचय’ में मिलता है । विज्ञान किसी भी रूप में कला और संगीत से अलग नहीं है, इस संग्रह की कविताएं विज्ञान के मानवीय पक्ष को अत्यंत सुकोमलता और भावप्रवणता से चित्रित करती हैं और भावी संहार से मनुष्य को आगाह करती हैं । यदि इन विज्ञान कविताओं में समाहित अथवा निहित सूक्ष्म जानकारी युवाओं को बचपन में मिल जाए तो उनकी ज्ञान कोष की सीमा ही बदल जाए। ऐसे शब्दों का प्रयोग हमारी मानसिक एनसाइक्लोपीडिया में चले जाने वाला है। समस्त प्राणी, प्रकृति का संरक्षण जीवन जीने की वैज्ञानिक कला व समृद्धि तथा आर्थिकी का चिंतन कविताओं की प्राण आधार हैं जो मानवीय विकास के अत्यंत प्रभावी मॉडल के रूप में दिखाई देती है। प्रो.दिनेश चमोला ‘शैलेश’ ने अपने साहित्यिक सरोकारों का हवाला दे आमंत्रित विद्वानों के अवदान से शृंखला के गौरवान्वित होने की बात कर सुधी विद्वानों और सभा का आभार व्यक्त कर इसके दीर्घजीवी होने का आशीर्वाद दिया। प्रो. चमोला वर्तमान में गढ़ विहार, मोहकमपुर, देहरादून में रहते हैं।