देहरादून/ दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास के संयोजन में प्रख्यात हिंदी साहित्यकार ‘प्रोफेसर (डॉ.) दिनेश चमोला ‘शैलेश’ का सृजन-मूल्यांकन’ विषय पर आयोजित पाक्षिक व्याख्यानमाला का सातवां ऑनलाइन व्याख्यान उनके लघु कथा संग्रह ‘नन्हे प्रकाशदीप’ पर केंद्रित रहा । संयोजक रजिस्ट्रार, प्रो. मंजुनाथ अंबिग के स्वगत भाषण के उपरांत रायपुर, समारोह के अध्यक्ष, जे सी बोस विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय,फरीदाबाद हरियाणा के कुलपति, प्रोफेसर सुशील कुमार तोमर ने प्रोफेसर दिनेश चमोला शैलेश’ की विशिष्ट साहित्यिक उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भाषा मनुष्य को संस्कार्रित ही नहीं करती, अपितु उसकी साधना को जन-जन तक पहुंचाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । हिंदी के चर्चित साहित्यकार, प्रोफेसर (डॉ.) दिनेश चमोला ‘शैलेश’ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा,चेन्नई विगत कई माहों से एक सतत पाक्षिक व्याख्यानमाला का आयोजन कर रहा है जिसमें देश-विदेश की सुधि विद्वानों की उपस्थित प्रोफेसर चमोला की साहित्यिक अवदान की स्वीकृति का परिचायक है । प्रोफेसर चमोला विभिन्न विधाओं में सात दर्जन से ऊपर पुस्तक लिख चुके हैं । इन पर देश के अनेक विश्वविद्यालयों में पीएचडी स्तरीय शोध कार्य संपन्न हुए तथा चल रहे हैं । विगत 43 वर्षों से उनकी यह अखंड साधना इस बात का प्रमाण है कि वह एक सुधी अध्येता के साथ-साथ एक भावप्रवण कवि, जीवंत रचनाकार और साहित्य की विभिन्न विधाओं में एक साथ लिखने वाले समर्थ रचनाकार हैं । यह मेरे लिए अत्यंत हर्ष का विषय है कि उन्हें ‘ गाएं गीत ज्ञान विज्ञान के’ नमक विज्ञान कविता संग्रह पर साहित्य अकादमी का बाल साहित्य पुरस्कार भी प्राप्त हुआ है। उनका लेखन बहुआयामी है, वह देवभूमि उत्तराखंड से आते हैं इसलिए अपनी परंपरा के अनुरूप उनके लेखन में चिंतन में अनुभूति और अभिव्यक्ति में दर्शनिकता व आध्यात्मिकता का पुत्र सहज रूप से दिखाई देता है । आज का यह कार्यक्रम उनकी चर्चित पुस्तक ‘ नन्हे प्रकाशदीप’ पर केंद्रित है, जिसमें 115 आध्यात्मिक लघु कथाएं हैं। उसे पर केंद्रित है ये लघु कथाएं आकार में भले ही छोटी हैं, लेकिन इनका मंतव्य अथवा प्रतिपाद्य अत्यंत सूक्ष्म, गहन एवं विचारोंत्तेजनजक है इसमें कहीं जीवन की निसार यथार्थ एवं वैचारिक दर्शन से अप्पाजी हुई यह लघु कथाएं निश्चित ही किसी सब उद्देश्य एवं चरित्र निर्माण में सहायक सिद्ध हो सकती है । वे जितने अच्छे कवि कथाकार उपन्यासकार हैं उससे अधिक प्रभावी लघु कथाकार भी हैं जो बहुत सीमित विषय वस्तु में उसे असीम की सार्थक संदेश को एवं जीवन यथार्थ को प्रकट करने में कदापि जाते नहीं। निश्चित रूप से यह लघु कथा संग्रह भारतीय जीवन मूल्य एवं आध्यात्मिक परंपरा को पोस्ट करने का एक महत्वपूर्ण आयोजन है । विशिष्ट अतिथि के रूप में केरल विश्वविद्यालय, तिरुवनंतपुरम के पूर्व प्रति कुलपति, प्रोफेसर आर जयचंद्रन ने प्रोफेसर चमोला के विविधमुखी योगदान की सराहना करते हुए कहा कि वह एक समर्पित हिंदी से भी हैं जिन्होंने प्रत्येक विधा में उत्कृष्ट सृजन से अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है । इस लघु कथा संग्रह में रचनाकार ने शिल्प, कथावस्तु की दृष्टि से लघु कथाओं को इतनी महानता से गुना व बुना है कि वे अत्यंत प्रभविष्णु बन गई हैं । आदर्शवादी इन लोग कथाओं में मूल्य, चेतना, संस्कार, चरित्र निर्माण एवं एक समृद्ध व प्रतिभावान वैश्विक सृष्टि के विन्यास अथवा निर्माण की संकल्पना का प्रबुद्ध स्वर मुखर होता दिखाई देता है । ये लघु कथाएं देखने में जितनी छोटी हैं, मार्मिक चित्रण एवं विषय वस्तु की तरह दृष्टि से उतनी ही वैराट्य भी लिए हुए हैं । रचनाकार ऐसी अपूर्व व धारदार रचनाओं के लिए विशिष्ट साधुवाद का पात्र है । यह आमंत्रित विद्वान के रूप में मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय , हैदराबाद के हिंदी विभाग के प्रोफेसर एवं समालोचक व प्रोफेसर के. एस. ऊटवाल ने प्रोफेसर चमोला को आदर्शवादी लघु कथाओं का चितेरा कहा और यह भी कहा कि इनकी लघु कथाएं गागर में सागर और बिंदु में सिंधु को समाहित करने की क्षमता रखने वाली हैं । ये लघु कथाएं जीवन मूल्य, चरित्र निर्माण, संघर्ष, आत्मसम्मान आदि मूल्योन्मुखी भावनाओं को अपने में समेटे हुए हैं जो परोक्षतः लेखक के जीवन आदर्श व कठोर तप-साधना से निसृत हुई हैं । उन्होंने प्रो. चमोला की लघु कथाओं की चर्चा करते हुए उन्हें फिल्म उद्योग तथा गायिकी से जोड़कर विभिन्न दृष्टांतों के माध्यम से विस्तार से विवेचित विश्लेषित किया इससे पूर्व प्रोफेसर (डॉ.)दिनेश चमोला ‘शैलेश’ ने अपने साहित्यिक सरोकारों का हवाला दे आमंत्रित विद्वानों का आभार व्यक्त किया । इस शृंखला की लोकप्रियता के लिए उन्होंने दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा एवं उनकी समस्त टीम को भी हार्दिक साधुवाद व आशीर्वाद दिया। प्रो. चमोला वर्तमान में गढ़ विहार, मोहकमपुर, देहरादून में रहते हैं । प्रोफेसर (डॉ.)दिनेश चमोला ‘शैलेश’, पूर्व डीन एवं विभागाध्यक्ष, संप्रति- आचार्य एवं कुलानुशासक, उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार ।